दतिया | आखिरकार छः वर्षीय राहुल के माता-पिता के हौंसले व उत्साह तथा सरकारी मदद के आगे उसकी जन्मजात मूक-बधिर की शारीरिक बाधाएं बौनी साबित हो र्गइं। निर्धनता के बीच राहुल के माता-पिता ने अपने बच्चे की मूक-बधिरता पर हंसते-हंसते विजय हासिल की। दतिया शहर के बाशिंदे राहुल के पिता राजकुमार को अभाव एवं कष्टों के दौर में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत राहुल की सर्जरी के लिए आर्थिक मदद मिली और फिर जब वह उबरे तो आज अपने बच्चे के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। राजकुमार और उनकी पत्नी पिंकी केा जब यह पता चला कि उनका बच्चा जन्मजात मूक-बधिर है, तो उनके लिए यह किसी सदमे से कम ना था। जैसे-जैसे उनका यह मूक-बधिर बच्चा बड़ा होता गया, उनकी परेशानी बढ़ती गई। वो ना सुन पाता था और ना ही बोल पाता था। राहुल की इस हालत ने उसे दयनीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया था। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि कॉक्लियर इम्प्लांट कराना पड़ेगा और खर्च लाखों रूपये आएगा। लेकिन राजकुमार के पास इतना पैसा नहीं था। तभी किसी के कहने पर उन्होंने स्वास्थ्य विभाग से संपर्क किया, जहां उन्हें बताया गया कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत शासन के खर्चे पर उनके बच्चें को कॉक्लियर इम्प्लांट कर स्पीच थैरपी दी जाएगी। इस तरह राहुल को एक प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान में ना केवल मुफ्त में कॉक्लियर इम्प्लांट किया गया, बल्कि उसकी दवा का खर्च भी सरकार ने उठाया। अब राहुल समाज की मुख्य धारा में लौट आया है। वह अपनी दिनचर्या को सामान्य रूप से करने लगा है। राहुल के पिता राजकुमार एवं मां पिंकी पिछले समय को याद करके बताते हैं, ‘‘अपने बच्चे को रोज इस तरह देखकर बड़ा कष्ट होता था। उसको ज्यादा समय तक ऐसे देखना कठिन था। लेकिन उसकी परेशानी का हल शासन ने निकाला। अब उनको चिंता नहीं रही।‘‘ दतिया शहरी क्षेत्र की आर.बी.एस.के. से जुड़ीं डॉ. रश्मि श्रीवास्तव कहती हैं कि मूक-बधिर बच्चों को कॉक्लियर इम्प्लांट किए जाने का सारा खर्च शासन द्वारा उठाया जाता है।
जन्मजात मूक-बधिरता से मिली मुक्ति (सफलता की कहानी)